लेखक की कलम से...


लेखक की कलम से...
आयुर्वेद-मुक्तावली नामक पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। इस पुस्तक का लेखन व संकलन करते हुए मेरे मन मस्तिष्क में क्या चल रहा था, मेरे विचार क्या थे, मैंने क्यों इस पुस्तक को प्रकाशित करवाने का विचार श्री रमेश वर्मा जी के साथ मिलकर किया। इन्हीं प्रश्नों पर मैं इस पृष्ठ पर चर्चा करूंगा।मैंनें 16 अक्टूबर सन् 1956 को वैद्य परिवार में जन्म लिया। जन्म से ही आयुर्वेद विषय की बातें मेरे दादा जी वैद्य श्री जय कृष्ण दत्त जी आयुर्वेदाचार्य व मेरे पिता श्री वैद्य हीरालाल जी शास्त्री आयुर्वेदाचार्य के सान्निध्य में सुनता रहा। जब मैं पहली कक्षा में पढ़ने स्कूल गया तो मेरे अध्यापक व सहपाठी मुझे ‘वैद्य जी’ कहकर बुलाते थे, तभी से मेरे मन मस्तिष्क में वैद्य बनने की लालसा एवं जिज्ञासा उत्पन्न हुई। मैंने हायर सैकेंडरी कक्षा में अंग्रेजी माध्यम से फिजिक्स, कैमिस्ट्री, बायोलाॅजी के साथ-साथ संस्कृत विषय लिया, क्योंकि उस समय आयुर्वेदाचार्य में प्रवेश के लिए संस्कृत विषय अनिवार्य था। मुझे तो विरासत में आयुर्वेद ही मिला और मैं राजकीय सेवा में जाने के बजाय अपने औषधालय में चिकित्सक बना, क्योंकि मेरे पिताजी का स्वर्गवास मेरे परीक्षा परिणाम के घोषित होने के दिन ही हो गया था। परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेवारी कन्धों पर आई। साथ ही साथ महान् आयुर्वेदज्ञों की विरासत को आगे बढ़ाने की कठिन जिम्मेवारी भी निभानी पड़ी। मैं आयुर्वेदाचार्य करने के बाद आयुर्वेद महाविद्यालय में पढ़ाना चाहता था। आयुर्वेद का अध्यापन मेरा आज भी जुनून है। इसी जुनून व जिज्ञासा के कारण मैं लेख लिखता हूं, जोकि मुझे कुछ सुकुन देता है। एक पुस्तक पहले मैंने ‘काम तरंगिणी’ के नाम से लिखी, जो आप सभी ने सराहकर मुझे प्रोत्साहित किया। फिर एक दिन रमेश वर्मा जी ने जामवंत बनकर मेरे मन रूपी हनुमान जी को प्रेरणा दी कि आप ऐसी एक पुस्तक आयुर्वेद की लिखो, जिसमें आयुर्वेद संक्षिप्त रुप में हो, लेकिन उसमें समस्त ग्रन्थों एवं आपके अपने अनुभवों का तथा दादा जी, पिता जी के अनुभवों का सार हो। पुस्तक पर कार्य प्रारम्भ हुआ, करीब दो साल के अथक प्रयत्नों एवं प्रबुद्ध वैद्यों के सहयोग से आर्ष ग्रन्थों से चुन-चुन कर लाई गई मुक्ताशुक्ति रूपी योगों से सजी यह
 पुस्तक अब प्रकाशित हो चुकी है। मेरे लिए आप आयुर्वेद रूपी मानसरोवर के राजहंस है। इस आयुर्वेद रूपी मुक्तावली (मोतियों की माला) के मोतियों की गणना आपके सिवा और कौन कर सकता है, यदि मोतियों को चुनाव करते हुए एकआध कंकर आ भी जाएं तो मुझे आयुर्वेद का किंकर (तुच्छ सेवक) समझकर विद्वद् जन क्षमा कर देंगे। जिन आर्ष ग्रन्थों से उनके योग व द्रव्य गुण मैंने संकलित किए हैं, उन सभी महान् आयुर्वेदमनिषियों का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं।

‘विदुषानाम् चरणम् वन्दे।’

आयुर्वेदकिंकर: वैद्य सुभाष चन्द्र शर्मा, आयुर्वेदाचार्य (जयपुर),

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